Land Compensation Rules : भारत में विकास कार्यों के लिए सरकार निजी जमीन का अधिग्रहण करती रही है, लेकिन कई बार भू-स्वामियों को समय पर उचित मुआवजा नहीं मिल पाता। इससे उन्हें आर्थिक और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो भू-स्वामियों के अधिकारों की रक्षा के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
संपत्ति का अधिकार: एक संवैधानिक संरक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 300-A के तहत संपत्ति का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है। इसके तहत किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से तभी वंचित किया जा सकता है जब कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह पालन हो। यानी बिना मुआवजा दिए या प्रक्रिया अपनाए किसी की जमीन लेना संविधान का उल्लंघन है।
बेंगलुरु-मैसूरु प्रोजेक्ट से जुड़ा मामला
यह फैसला कर्नाटक के बेंगलुरु-मैसूरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़ा है। 2003 में इस प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की गई थी और 2005 में जमीन का कब्जा ले लिया गया। लेकिन 22 साल बाद भी भू-स्वामियों को मुआवजा नहीं मिला, जिसके चलते वे कोर्ट पहुंचे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां कोर्ट ने भू-स्वामियों के पक्ष में फैसला दिया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को बिना मुआवजा दिए जमीन से बेदखल करना अवैध है। सरकार को पहले उचित मुआवजा देना चाहिए और तभी जमीन का कब्जा लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB) के अधिकारियों की लापरवाही की भी आलोचना की और कहा कि मुआवजा देने में अनावश्यक देरी की गई।
पुरानी दर पर मुआवजा नहीं चलेगा
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब इतने सालों तक मुआवजा नहीं दिया गया, तो 2003 की दर पर भुगतान करना न्यायसंगत नहीं है। भू-स्वामियों को मौजूदा बाजार दर (2019 के अनुसार) पर मुआवजा मिलना चाहिए। कोर्ट ने संबंधित अधिकारी को दो महीने के भीतर नई मुआवजा राशि तय कर भू-स्वामियों को भुगतान करने का आदेश दिया।
फैसले का व्यापक असर
यह फैसला न केवल इस मामले के लिए, बल्कि भविष्य के सभी भूमि अधिग्रहण मामलों के लिए भी एक मिसाल बनेगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सरकार भूमि अधिग्रहण से पहले मुआवजा तय करे और उसका समय पर भुगतान करे। अगर देरी होती है, तो मुआवजा बाजार की मौजूदा कीमतों के अनुसार मिलना चाहिए।
भू-स्वामियों और सरकार दोनों के लिए संदेश
इस फैसले से सरकार और अधिकारियों को यह स्पष्ट संदेश गया है कि विकास कार्यों के नाम पर भू-स्वामियों के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। वहीं, आम लोगों के लिए यह उम्मीद की किरण है कि उनके साथ न्याय होगा।