New Property Rule – अगर आपके घर में कभी इस बात पर बहस हुई है कि “पापा ने हमारी जमीन क्यों बेच दी?” या “बेटे से पूछे बिना प्रॉपर्टी कैसे बेच दी?”, तो अब इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ दे दिया है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने केस में फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर परिवार का मुखिया यानी ‘कर्ता’ कानूनी ज़रूरतों के लिए पैतृक संपत्ति बेचता है, तो बेटा या कोई भी हिस्सेदार उस पर सवाल नहीं उठा सकता। ये फैसला लाखों भारतीय परिवारों के लिए बेहद अहम है।
क्या था मामला?
ये केस कोई नया नहीं था, बल्कि 1964 से चला आ रहा था। एक शख्स केहर सिंह ने अपने पिता प्रीतम सिंह के खिलाफ मुकदमा किया था। उन्होंने कहा कि उनके पिताजी ने 1962 में लुधियाना की 164 कैनाल जमीन 19,500 रुपये में बेच दी थी, जो कि पैतृक संपत्ति थी। बेटे का तर्क था कि ये बिक्री गलत थी क्योंकि उनसे पूछे बिना ये फैसला लिया गया।
ट्रायल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर
- ट्रायल कोर्ट ने बेटे के हक में फैसला दिया और जमीन की बिक्री रद्द कर दी।
- लेकिन अपील कोर्ट ने पाया कि जमीन की बिक्री कर्ज चुकाने जैसे वैध कारणों से की गई थी, इसलिए फैसला पलट दिया।
- हाईकोर्ट ने भी यही कहा कि अगर कानूनी जरूरत हो तो कर्ता संपत्ति बेच सकता है।
- और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर मुहर लगा दी।
कर्ताओं को मिल गया कानूनी हक
जस्टिस ए.एम. सप्रे और एस.के. कौल की बेंच ने ये फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि हिंदू कानून के अनुच्छेद 254(2) के तहत परिवार का कर्ता जरूरत पड़ने पर संपत्ति को बेच सकता है—even अगर उसमें बेटों या पोतों का हिस्सा हो। बशर्ते उस बिक्री का कारण “कानूनी और नैतिक” हो।
कब मान्य होगी संपत्ति की बिक्री?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि किन हालात में कर्ता की ओर से की गई प्रॉपर्टी की बिक्री को वैध माना जाएगा। जैसे:
- परिवार का कर्ज चुकाना
- खेती सुधारना
- बच्चों की शादी या शिक्षा
- गंभीर बीमारी या आपराधिक केस से निपटने के लिए खर्च
- न्यायिक खर्च या सरकारी देनदारी
- घर के खर्च या भरण-पोषण
यानी अगर पिताजी ने कोई प्रॉपर्टी बेची है और उसका मकसद परिवार की भलाई है, तो बेटा चाहे तो भी कोर्ट में उसे चुनौती नहीं दे सकता।
इस फैसले से क्या बदलेगा?
इस फैसले से उन हजारों-लाखों परिवारों को राहत मिलेगी जहां पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद चल रहे हैं। बहुत से केस में बेटे कहते हैं कि “ये हमारी भी संपत्ति है, पिता अकेले कैसे बेच सकते हैं?” अब कोर्ट ने साफ कह दिया है कि अगर कारण सही है, तो बिक्री वैध है।
ये फैसला इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कई बार बेटों के बेमतलब के केस सिर्फ कोर्ट का समय और पैसा बर्बाद करते हैं। अब पिता या परिवार का मुखिया कानूनी ज़रूरतों के लिए निडर होकर निर्णय ले सकेगा।
डिस्क्लेमर:
यह लेख केवल सामान्य जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर आधारित है, जो परिस्थितियों के अनुसार अलग हो सकती है। किसी कानूनी सलाह के लिए अपने वकील या कानूनी विशेषज्ञ से संपर्क जरूर करें।